मिलन मीत का बंधन प्रीत का

"मित्रता" एक ऐसा भावात्मक बंधन जो प्रेम और भक्ति के भेद को पाट कर वहां समर्पण और त्याग का आदर्श दर्शाता है। प्रेम और मित्रता में सर्वस्व न्यौछावर करके भक्ति का चरम पद प्राप्त किया जा सकता है यह कृष्ण सुदामा की मित्रता प्रमाणित करती है। प्रस्तुत है भाव विभोर कर देने वाली कृष्ण सुदामा की मैत्री पर आधारित रचना:- मीत मेरे घर आया सुदामा बड़े दिनों के बाद में, क्या मुझसे कुछ हुई भूल जो आया ना तुझको याद में। एक गली में एक नदी पर साथ साथ में खेले है, कैसे दौड़े थे हम दिन भर सुनकर कहीं पर मेले हैं। बचपन के वो प्यारे दिन लौट ना आने बाद में.. क्या मुझसे कुछ भूल ........ ना जाने तु क्यु है भूला प्यारी प्यारी याद को, आजा मेरे मीत सखा तू थाम ले मेरे हाथ को। इन पकवानो मैं कहाँ मजा होता था जो भात में क्या मुझसे कुछ भूल ........ मेरे सखा मेरे पास बैठ आ हाल सुना तू भाभी का, बच्चे कैसे क्या है लाय...