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मिलन मीत का बंधन प्रीत का

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"मित्रता" एक ऐसा भावात्मक बंधन जो प्रेम और भक्ति के भेद को पाट कर वहां समर्पण और त्याग का आदर्श दर्शाता है। प्रेम और मित्रता में सर्वस्व न्यौछावर करके भक्ति का चरम पद प्राप्त किया जा सकता है यह कृष्ण सुदामा की मित्रता प्रमाणित करती है।  प्रस्तुत है भाव विभोर कर देने वाली कृष्ण सुदामा की मैत्री पर आधारित रचना:- मीत मेरे घर आया सुदामा बड़े दिनों के बाद में,  क्या मुझसे कुछ हुई भूल जो आया ना तुझको याद में। एक गली में एक नदी पर साथ साथ में खेले है, कैसे दौड़े थे हम दिन भर सुनकर कहीं पर मेले हैं। बचपन के वो प्यारे दिन लौट ना आने बाद में..                             क्या मुझसे कुछ भूल ........ ना जाने तु क्यु है भूला प्यारी प्यारी याद को, आजा मेरे मीत सखा तू थाम ले मेरे हाथ को। इन पकवानो मैं कहाँ मजा होता था जो भात में                           क्या मुझसे कुछ भूल ........ मेरे सखा मेरे पास बैठ आ हाल सुना तू भाभी का,  बच्चे कैसे क्या है लाया तोहफा प्यार से भाभी का। देवर प्यारा हूं भाभी का भेजा प्रेम है साथ में                          क्या मुझसे कुछ भूल....... जो भी लाया देदे सुदाम

सात फेरे सात वचन

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विवाह दो शरीरों का मेल ही नहीं दो संस्कृतियों का भी मेल है जिसमें दो अलग-अलग परिस्थितियों में जीने वाले मिलकर एक नई जीवन रचना करते हैं। सात फेरे भारतीय संस्कृति में जब किसी का विवाह होता है तो सात फेरे लिए जाते हैं वैदिक पुराणों के अनुसार हर फेरा एक वचन का प्रमाण देता है । प्रस्तुत है आपके सामने एक रचना जिसमें सात फेरों का चित्रण किया गया है। सात फेरे सात वचन जब हमारा मिलन हो रहा था प्रिये, सात फेरों में मुझको चुना ही तो होगा। आज से दर्द खुशीयों में बराबर के साझी, तुमने पहला वचन ये सुना ही तो होगा।           जब हमारा मिलन हो रहा था प्रिये..... जो सजा सूत्र मंगल गले में तुम्हारे, मात्र मनके नहीं मेल मन का प्रिये। मान अपमान मेरा तुम्हारा भी होगा, तुमने दूजा वचन ये सुना ही तो होगा।             जब हमारा मिलन हो रहा था प्रिये..... दर्द दारूण दुखों से टूट जाऊं अगर, उस समय साथ मेरा न छोड़ोगी तुम। खुशीयां हो चाहे गम हो दोनों मिलकर सहेंगे, तुमने तीजा वचन ये सुना ही तो होगा।                                 जब हमारा मिलन हो रहा था प्रिये.....  भाई बहनें हो या मां पिताजी हमारे ,  फर्क मैं ना करूंग

नाम राज्य - एक कटु सत्य

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  ये रचना कोई व्यंग्य नहीं है आज की वास्तविकता है मानव जिस गति से अनीति, अत्याचार और अपराध कर रहा है यह कहना गलत नहीं होगा की प्रलय काल निकट आ रहा है। जीवन मूल्यों में इतनी गिरावट कि मनुष्य की तृष्णा उसे भगवान तक को बेच खाने को मजबूर कर देगी दुखद है। अधिक कुछ कहना व्यर्थ भाषण लगेगा अतः सीधे एक रचना से जोड़ना सही रहेगा। राम नहीं @ नाम राज छोड़कर साकेत नगरी राम लौटे फिर धरा पर, फिर कोई रावण ही होगा लौट जाऊंगा हरा कर। पर अयोध्या सीमा में घुसते ही पुष्पक रोक दिया, पांच सौ देने पड़े एक गार्ड ने था टोक दिया। जब महल ढूंढा मिला जर्जर सा एक पाषाण खंड, आवेग जो अब तक दबा था हो गया आखिर प्रचंड। पूजते थे लोग मुझको एक ऐसा भी समय था, हर तरफ़ ख़ुशहाली थी व्यक्ति व्यक्ति धर्ममय था। किंतु लगता है निरर्थक मैंने इतना दर्द भोगा, स्वप्न में भी ये ना सोचा ऐसा भी कुछ देखना होगा। सहसा नूतन एक भवन बनते जो देखा राम ने, दुख भंवर का मिला किनारा सोचा था श्री राम ने। पूछा जब एक मजदूर से क्या ये भवन मेरे नाम होगा, 5000 दोगे तो निश्चित एक पत्थर तेरे भी नाम होगा। खूब आदर पा के राजा राम हनुमत को पुकारें, अब तो बजरंग ही

MAA ( माँ )

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ईश्वर हर जग हर किसी की मदद नहीं कर सकता है लिए उसे अपना एक प्रतिरूप धरती पर मां के रूप में भेजा ! धरती पर शायद ही कोई ऐसा इंसान हो जिसे कभी मां को महसूस नहीं किया हो खुद भगवान भी इसी एक शब्द को बोले के लिए धरती पर अवतार लेते हैं। सृजन माॅं का तन्हाइयों के वक्त एक दिन भगवान ने यूं मन बनाया , अद्भुत सृजन की ठान मन में प्रेम का दीपक सजाया। जज़्बात की मिट्टी को लेकर प्यार में बेहद मिलाया, पाषाण सीरत पुष्प सुरत पर देह को कोमल बनाया। अपनी सभी अच्छाईयों से भगवान ने उसको सजाया, मुस्कान और आंसू दया के साथ एक ढांचा बनाया। सहना सिखाया रोना सिखाया पर नहीं कहना सिखाया, मेहनत इतनी करके भगवान ने "माॅं" को बनाया। ✍️ दशरथ रांकावत 'शक्ति' भाषाई सुंदरता का समावेश करते हुए पेश है एक कविता           राजस्थान के मारवाड़ की क्षेत्रीय भाषा में लिखित मां पर कविता ..... एक प्रोढ व्यक्ति के उम्र के आखिरी पड़ाव में आ रही बचपन की यादों के भावावेग पर आधारित है.... *तु याद है मां मैं थने भुलू कीकर*  तु याद है माँ मैं थाने भुलू कीकर,   हुयो हूँ मोटो थारो ही दूध पीकर,    तु याद है माँ में थाने भुलू क

शायरी कैसे लिखें :- उर्दू शब्दकोश

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उर्दू और हिंदी में बड़े से बड़े शायर कवि, महाकवि हुए जिनकी शायरी और गजलें हजारों सालों से अमर है।  कभी ग़ालिब ने कहा था -       "गा़लिब बुरा ना मान जो वाइज़ बुरा कहे,       ऐसा भी है कोई कि सब अच्छा कहे जिसे।" ग़ालिब भी मानते थे कि तुम कुछ भी लिखोगे लोग गलत ही कहेंगे तो इस बात पर ध्यान देने से कोई मतलब नहीं कि लोग क्या कहेंगे मगर वर्तनी और सार्थकता का ध्यान रखना जरूरी है। शायर या सुख़नवर वह है जो अपने जज्बातों को ऐसे बयां करे है कि सुनने वाले को पसंद भी आये और अपनी बात भी पहुंच जाये।  लिखना बड़ी बात नहीं मगर सही शब्दों का प्रयोग जरूरी है साथ ही हिन्दी  की मात्राओं और मीटर क़ाफिया रदीफ का ज्ञान भी जरूरी है।  इसलिए अच्छी और सच्ची शायरी/ग़ज़ल लिखने के लिए एक शायर को इन बातों का ध्यान रखना बेहद जरूरी है:- मिसरा/जुमला:-  शायरी की पंक्तियों को मिसरा भी कहते हैं। शेर:-  दो जुमलों या पंक्तियों से मिलकर बनी बात को शेर कहते हैं जिसका कोई भाव या अर्थ होता है। " हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम ,   वो कत्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता।" मतला:-   किसी भी गजल के पहले शेर

तुमने कह तो दिया

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 यारो इश्क़ थोडा़ बहुत सब ने ही किया होगा वो चाहे किसी जानवर से हो या इंसान से मगर तकलीफ तो तब होती हैं जब वो आपका दिल तोड़ देता है।  वाकई कभी-कभी किसी की एक छोटी और ओछी बात दिल में ऐसा घाव करती है जो भरता नहीं है।  कुछ ऐसी ही कशमकश में लिखा एक दर्द भरा गीत पेश है आपकी ख़िदमत में - तुमने कह तो दिया भूल जाओ भूलना इतना आसान है क्या,  मरना बिन तेरे मुश्किल नहीं जीना बिन तेरे आसान है क्या। सूख जाता है जब कोई शज़र छूट जाता है पत्तों का घर,  टूटे पत्तों से जाकर के पूछो टूटना इतना आसान है क्या।                          मरना बिन तेरे मुश्किल नहीं........... जाने कितनी दफा हम तुम एक दूजे से छुप छुप मिले,  भूल जाते थे सिकवे सभी जब भी नैना से नैना मिले।  इतने पहरो में मिलना कोई जान बोलो ना आसान है क्या।                           मरना बिन तेरे मुश्किल नहीं.......... याद तुमको वो वादे भी है क्या तुम थे मैं था और कोई नहीं, जाने कितनी ही रातें बिताई मैं जगा तुम भी सोई नहीं। इश्क़ की ऐसी लहरें उठी तैरना इतना आसान है क्या।                          मरना बिन तेरे मुश्किल नहीं........ मैने माना था सब कुछ

टूटा दिल

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दुनियां में कुछ रोग ऐसे होते हैं जिनका कोई इलाज  नहीं होता शरीर में किसी प्रकार की कोई चोट नहीं लगती लेकिन फिर भी इसके घाव इतने गहरे होते हैं कि किसी किसी की जान तक ले लेते है।  इश्क,प्यार,मोहब्बत एक ऐसा ही रोग है जिसमें इंसान खाना पिना भी भूल जाता है।   मगर जब प्यार,मुहब्बत और दोस्ती में धौखा मिलता है इंसान टूट जाता है कोई तो दूसरो का नुकसान करके खुद को तसल्ली देता है और कोई खुद को तबाह कर लेता है। हो कोई जख्म दिल के करीब इतना, तेरे जाने का दर्द हावी ना हो। उसके हर एक नखरे का मैं दीवाना हूं, कोई अदा नहीं बाकी जो दिखाई ना हो। उसकी आंखों की मिले कैद ताउम्र मुझको, मैं चाहूं भी मगर मुझे रिहाई ना हो। तमन्ना एक ही पूरी मेरे खुदा कर दे, रोग ए इश्क़ अता कर भले दवाई ना हो। मुझको ही देना सजा बेवफाई की मौला, भले उसने ही मुझसे निभाई ना हो।   दशरथ रांकावत "शक्ति"    प्यार ,मुहब्बत के जो उसूल पहले थे कि सात जन्म तक साथ के सपने बुने जाते थे वे अब नहीं रहे। ये भी सच है कि :- दिल की किताब लफ्जो की मोहताज नहीं, उसूल ये है जो दिल में है आँखों से बोल दो। आशिकी अब नहीं रही

ठोकर जरूरी है

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कहीं सुना था लाखों करोड़ो जीवो में सिर्फ इंसान ही अकेला जीव है जिसे बुद्धि दी है मगर ये कोई अद्भुत बात नहीं मगर एक गुण ऐसा है जो उसे अद्भुत बनाता है और वो है उसका साहस,जीत का जुनून , जिद़, झूझने की हिम्मत! ऐ समंदर मान ले तु अकेला खारा नहीं, दर्द और तकलीफ से कौन है मारा नहीं। जिद़ रही है जान जब तक हार तो मानू नहीं,         जीत है या मौत मंजिल़ तीसरा चारा नहीं।                                        दशरथ रांकावत "शक्ति" जिद़ इंसान से वो करवा सकती है जो असंभव लगता हो पूरी दुनिया में ऐसे कई लोगो की कहानी आपने भी सुनी होगी मगर क्या है जो इनको असंभव को करने को मजबूर करता है। हाँ वही जिसे हम कहते है - ठोकर, धोखा, धक्का मगर ये इतना भी आसान नहीं  क्या क्या नहीं करना पडता है कभी मंजिल ने इंसान से पूछा था:- मंजिल ऐ विजेता पूछे मंजिल यूं ही क्या बस दौड़ आए, पथिक कहते राह मुश्किल तू बता क्या मोड़ आए।  पैर में छाले है कैसे आंख में पानी है क्यों, सच बता क्या क्या है खोया राह में क्या छोड़ आए। विजेता सुन ओ मंजिल जीत तो कुछ पल का बस आराम है, 

कोरोना -महामारी या कर्मो का फल

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      2020 शायद दुनियां का एक भी कोना ऐसा नहीं होगा जहां उस महामारी ने अपना प्रकोप नहीं फैलाया । सच ही कहा है :- ये जो हो रहा है ना सब अपने ही कर्मो का फल है, अभी बाकी है आगे आगे देखो होता है क्या,  मौत सुला देगी अच्छे अच्छो को ऐसा वक्त आयेगा, लोग पूछेंगे एक दूजे से तु चेन से सोता है क्या। ये भविष्य नहीं वर्तमान बता रहा हूँ तुमको,  ये वहम था कल तक कोई घर में कांटे बोता है क्या। एक रोटी तो क्या कोई पास खड़ा भी नहीं होने देगा, लोग भूल जायेंगे अपना होता है क्या।  मिठाई वहम है रोटीयां दिखेगी सपनो में, तुम कहोगे रोटी का भी सपना होता है क्या।  मगर पूछ मत लेना मुझसे बता नहीं पाउंगा, इंसान अपनी इंसानियत भी खोता है क्या।                                दशरथ रांकावत "शक्ति"  क्या प्रकृति अपने अंदर रहने वाले जीवो का विनाश कर सकती है क्या मां अपने बेटे का गला घोट सकती है क्या नदी अपना पानी खुद पी सकती है पेड़ अपना फल खुद खा सकता है नहीं हरगिज़ नहीं  तो इसका कारण क्या है सच पूछो तो इसका कारण केवल और केवल इंसान की खुद की लापरवाही खुदगर्जी है । मर्ज ए