Followers

नाम राज्य - एक कटु सत्य

 ये रचना कोई व्यंग्य नहीं है आज की वास्तविकता है मानव जिस गति से अनीति, अत्याचार और अपराध कर रहा है यह कहना गलत नहीं होगा की प्रलय काल निकट आ रहा है।

जीवन मूल्यों में इतनी गिरावट कि मनुष्य की तृष्णा उसे भगवान तक को बेच खाने को मजबूर कर देगी दुखद है।

अधिक कुछ कहना व्यर्थ भाषण लगेगा अतः सीधे एक रचना से जोड़ना सही रहेगा।



राम नहीं @ नाम राज


छोड़कर साकेत नगरी राम लौटे फिर धरा पर,

फिर कोई रावण ही होगा लौट जाऊंगा हरा कर।

पर अयोध्या सीमा में घुसते ही पुष्पक रोक दिया,

पांच सौ देने पड़े एक गार्ड ने था टोक दिया।

जब महल ढूंढा मिला जर्जर सा एक पाषाण खंड,

आवेग जो अब तक दबा था हो गया आखिर प्रचंड।

पूजते थे लोग मुझको एक ऐसा भी समय था,

हर तरफ़ ख़ुशहाली थी व्यक्ति व्यक्ति धर्ममय था।

किंतु लगता है निरर्थक मैंने इतना दर्द भोगा,

स्वप्न में भी ये ना सोचा ऐसा भी कुछ देखना होगा।

सहसा नूतन एक भवन बनते जो देखा राम ने,

दुख भंवर का मिला किनारा सोचा था श्री राम ने।

पूछा जब एक मजदूर से क्या ये भवन मेरे नाम होगा,

5000 दोगे तो निश्चित एक पत्थर तेरे भी नाम होगा।

खूब आदर पा के राजा राम हनुमत को पुकारें,

अब तो बजरंग ही हमारे संकटों को आकर निवारे।

जब हृदय की गहरी पुकारें सुन के भी हनुमत न आये,

राम फिर बोलें सिया से है प्रिये हम व्यर्थ आये।

नंगे पग तब एक बाह्मण भागता आता लगा,

राम पहले चौकें थे फिर भाव से हनुमत लगा।

गिर चरण में रो पड़े हैं प्रभु आप क्यू लौट आये,

क्या विधाता लिख रहे हैं जो आपको ये दिन दिखाये।

मैं अकेला ही बहुत भुगता हूं इस भव जाल में,

आप क्यू फिर लौट आये व्यर्थ इस जंजाल में।

है जानकी माता किसी को चाहे तुम मातृत्व देना,

प्रेम भावों में भी बह कर मत कभी अमरत्व देना।

इस धरा पर मैंने जो जो पाप अत्याचार देखें,

है प्रभु रावण भला था दुष्ट हद से पार देखें।

बाप देखें व्याभिचारी कुलनाशीनी माएं भी देखी ,

महाशत्रु भाई देखें पीशाचनी बहने भी देखी।

भगवाधारी पापी देखें तिलकधारी चोर,

मानवरूपी दानव देखे क्या बताऊं और।

ये धरा के मुर्ख चुनकर एक शासक है बनाते,

पांच वर्ष रो रो कर फिर सबको ये दुखड़ा सुनाते।

सब जानकर फिर उसी को निर्विरोध राजा बनाते,

तानाशाही सहते हैं लेकिन सबको ये अच्छा बताते।

अब नहीं बनते हैं पुल फिर प्रेम में पत्थर तैरा कर,

अब नहीं उठते हैं पर्वत भक्ति में शक्ति मिलाकर।

है प्रभु भक्ति का जब इतना भयंकर फल मिलेगा,

तो कौन बजरंग लांघ कर सागर सिया से जा मिलेगा।

अब तक तो रघुवर सुन रहे थे बोले क्या मानव हुआ है,

दो प्रहर रूक कर ही ऐसा दुख हमें अनुभव हुआ है।

बजरंग तुम महावीर हो जो आज तक यह सह रहे हो,

अब प्रलय सच में ज़रूरी सच पवनसुत कह रहे हो।

पर अभी एक आखरी चेतावनी देना जरूरी,

चाहता हूं ना रखूं अब तक चली वो प्रथा अधूरी।

ये कोई रचना नहीं ये वर्तमान का चित्रण है,

जीवन कोई खेल नहीं है ये निश्चित ही रण है।

ये भयंकर आपदाएं आती बस यही समझाने को है,

अगर यू ही हदें तोड़ते रहे तो अंत आने को है।

ये धरा जाने फिर कौनसा राम राज्य लाने को है,

जब राम ही होकर निराश लौट कर जाने को है।

                        ✍️  दशरथ रांकावत 'शक्ति'©



Comments

  1. गजब रचना दशरथ भाई
    वाकई मंत्रमुग्ध कर दिया
    जय जय श्री राम

    ReplyDelete
  2. अति सुंदर रचना 👌👌👌

    ReplyDelete
  3. Online Casinos | Casino Software | Online Gambling
    Here we are going to list the best 엠 카지노 도메인 online casinos 포커 게임 하기 you 온라인 카지노 조작 can play. We have reviewed the top online casinos that offer them 승인 전화 없는 가입 머니 and explain how 슈어 벳 주소 to download and

    ReplyDelete
  4. यथार्थ दर्शाती कविता

    ReplyDelete

Post a Comment

बहुत धन्यवाद इस प्रोत्साहन के लिए

Popular posts from this blog

शायरी कैसे लिखें :- उर्दू शब्दकोश

सात फेरे सात वचन