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संवेदनाएं


इस भागती दौड़ती हुई जिंदगी में इंसान इतना व्यस्त हो गया है कि उसकी संवेदनशीलता इस व्यस्तता के भोग चढ गई है।
आज एक घटना ने मुझे अंदर तक झकझोर दिया और ये प्रमाण दिया कि अभी मेरे अंदर बची भी है थोड़ी बहुत संवेदनशीलता।
 

दो वक्त की रोटी पाने की जद्दोजहद में आज

जा रहा था सड़क पर मोटरसाइकिल से मैं

बेपरवाह था क्योंकि सामने खुली सड़क थी

कुछ पचास फुट पर एक गिलहरी सड़क पार कर रही थी

मेरे पास पहुंचने तक लगभग दूसरे किनारे तक पहुंच गई थी

मैं निश्चिंत था कि अब जा सकता हूं

तकरीबन करीब पहुंचा तो अचानक आ गई मुड़ कर पीछे 

मैं हड़बड़ाया रोकना चाहा मगर रूक न पाया 

है ईश्वर! ये क्या कर दिया मैंने रूक गया मगर

हिम्मत न हुई देखूं पीछे कि क्या वो जीवित है 

क्यू वो पार पहुंच कर फिर से आई क्यू मैंने धीरे नहीं की

दिन भर के कमाये पैसे चोरी लगे कैसे किसी के घर अंधेरा कर खा पाऊंगा आज सुख की मेहनत की रोटी

हाय! वो तो थी जीव कहां दी थी उसको बुद्धि ईश्वर ने

मगर मैं तो जानता था सब कुछ किसने रोका था मुझे

करता तो है इंसान बुरा उनका जो करते हैं बुरा उसका

मगर क्या बिगाड़ा था मेरा उस भोली निर्दोष गिलहरी ने

मैं मुड़ न पा रहा था मगर पाप तो हो चुका था 

बड़ी हिम्मत बटोर कर देखा पीछे तो मिला परम सुख

नहीं थी वहां कोई गिलहरी है ईश्वर तेरा धन्यवाद

बारंबार धन्यवाद बचा लिया मुझे एक पाप से

मगर फिर क्यूं मुझे किया इतना द्रवित 

क्यूं जीवन में दर्शन हुए मृत्यु के 

क्यूं अनुभूति करायी पाप की

शायद देखना चाहता था ईश्वर मेरी संवेदनाएं

या चाहता था मेरा धैर्य परिक्षण करना

खैर जो भी हो मैं ईश्वर का ऋणी हूं कि 

बचाये रखी है अब तक मेरे अंदर

*संवेदनाएं*

✍️ दशरथ रांकावत 'शक्ति'




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बहुत धन्यवाद इस प्रोत्साहन के लिए

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