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कृष्ण-भीष्म संवाद


महाभारत के शांति पर्व का एक किस्सा हे पितामह भीष्म और भगवान श्री कृष्ण के बीच हुई आखरी बातचीत का काव्यात्म प्रयोग



           कृष्ण-भीष्म संवाद

जीना बड़ा कठिन है गिरधर बिन अपनो के जग में, वे ही कंधा देते हैं जब शक्ति न बचती पग में। कहो स्वर्ग के सुख एकाकी कैसे भोग करूंगा, इच्छा मृत्यु पाकर भी तो मैं एक रोज मरूंगा। सोचा नहीं कभी था मैंने जिनको गोद बिठाना है, उनके शरीर को एक ना एक दिन कंधा स्वयं लगाना है। तुम क्या जानों तुमने तो छोड़ा है जो भी प्रिय था, वृज राधा गोकुल छोड़े छोड़ा जो भी आत्मीय था। सुनकर मानव हुए क्षुब्ध फिर बोले यूं मुसका कर, है महावीर है पिताश्रेष्ठ सुनना सब कान लगा कर। जिस लिये जगत कहता है मुझको मायापति लीलाधर, उस कर्म धर्म की रक्षा हित मैंने छोड़ा अपना घर। खुद से कुछ दूर किया सबको छोड़ा मैंने किसी को भी नहीं, जिसको मैं देता हूं छोड़ उसका जीना तो संभव ही नहीं। है वीर सुनो माया वश हो तुमने जो भी सब बोला है, लो क्षमा किया मैंने हालांकि तुमने रवि रज संग तोला है। जीने का सिद्धांत सदा से धर्म रहा और धर्म ही होगा, स्वर्ग मिलेगा उनको ही जिनका ध्येय सत्कर्म ही होगा। ✍🏻 दशरथ रांकावत 'शक्ति'


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