एक कवि क्या देखता है वह क्या सोचता है और फिर क्या लिखता है वह इसे दिखाता है एक कविता निवेदित है-
खुशियाँ सबको दिखती है हम गम देखते है,
तुमको फिर भी लगता है हम कम देखते है।
ऊँचे कंगूरे गुम्बद शिखर सबको दिखते है,
हमारी नजर अलग है हम खम* देखते है।
हमने जब दोस्ती की दिल देखा नीयत देखी,
वो कोई और आदम होंगे जो दम* देखते है।
हमको उन घुंघरूओं की गुलामी खलती है,
देखने वाले यकीनन उनकी छम* देखते है।
जी चाहता है चूम लूं लिपट जाऊं जाकर,
आँसू थमते ही नही मेरे जब अम* देखते है।
ये जो लिखते है ना बडी़ अजीब कौम है 'शक्ति'
दुनियाँ सुनती है जिसे कवि वो घम* देखते है।
✍️ दशरथ रांकावत 'शक्ति'
खम - स्तंम्भ जो भार उठाये रहता है
दम - शक्ति , सामर्थ्य
छम - झंकार,आवाज
अम - चाचा, बाप का भाई, पितृभ्राताघम - कोमल तल पर कडा़ आघात लगने से उत्पन्न नाद/आवाज
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बहुत धन्यवाद इस प्रोत्साहन के लिए