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बैठे बैठे तो

    


  बैठे बैठे तो ये आज भी कल हो जायेगा,  बेकारी मस्अला है मगर हल हो जायेगा। अकेले ही सही मगर तुम निकलो तो सही,  देखना देखते ही देखते ये दल हो जायेगा।    नामुमकिन कुछ भी नही अगर जिद्द है, एक न एक दिन गगन भी थल हो जायेगा।   मुठ्ठियाँ कस के बाँध और इंतजार कर, जुनू से पत्थर पिघल कर जल हो जायेगा।                                   दशरथ रांंकावत 'शक्ति'



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