एक अधूरी किताब की कुछ पुरी रचनाएँ आप सभी की खिद़मत में...
पहली बार ---1. चुनाव
लड़ने द़रकार लगी है पहली बार
लहरे भी द़मदार लगी है पहली बार
कागज की कश्ती ना अब तक पार हुई
नौका कोई पर लगी है पहली बार
झूठों ने सच्ची सच्ची तस्लीमें दी
गर्दन पर तलवार लगी है पहली बार
ना हिंसा ना हुडदंंग और चुनाव हुए
चाकू पर ना धार लगी है पहली बार
परिवर्तन की गुंजाइश तो ना थी पर
जनता ये हकदार लगी है पहली बार
आस बंधी है नया सवेरा निकलेगा
भली कोई सरकार लगी है पहली बार
✍️ दशरथ रांकावत 'शक्ति'
पहली बार---2.बीमार
जिनसे थी उम्मीद उन्ही से खतरा है
बाजू कैसे भार लगी है पहली बार
जे़बों मेंं सिगरेट हाथ में बोतल है
नस्लें सब बीमार लगी है पहली बार
खुद पर जिनका जोर नही उनके हाथ
क्या होगा जब कार लगी है पहली बार
मद़होशी आँखो में पसीना चेहरे पर
मेहनत सब बेकार लगी है पहली बार
सींचा जिनको अपना खून पसीना देकर
वो कलियां अब खा़र लगी है पहली बार
छडी़ उठाओ बाबा मुहब्बत रहने दो
जूती अब तो सार लगी है पहली बार
कच्चे है ये घडे़ थाप तो वा़जिब है
अभी कहाँ कोई मार लगी है पहली बार
✍️ दशरथ रांकावत 'शक्ति'
पहली बार---3. दीवार
बरसों संग रहे शादी की लड़ बैठे
दीमक अब घरबार लगी है पहली बार
लड़ना पहली बार नही फिर ऐसा क्यों
कैद उसे परिवार लगी है पहली बार
सालों बहना आयी राखी संग बंधी
भाभी बहना भिडी़ अचानक पहली बार
भाभी ने भैया को राखी पर रोका
गलत जगह पर तार लगी है पहली बार
माँ लगती थी गलत बहन पर आँच न आयी
दोषी अब घर नार लगी है पहली बार
भाई मिलते थे छुप कर गलियारो में
अड़चन अब दीवार लगी है पहली बार
✍️ दशरथ रांकावत 'शक्ति'
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बहुत धन्यवाद इस प्रोत्साहन के लिए