आज की इस भागती जिंदगी में प्यार मोहब्बत के लिए किसी के पास समय नही है।
आज कल प्यार कपडे़ बदलने जैसा काम बन गया है जहां रोज किसी का दिल टूटता है और फिर और के साथ जुड़ जाता है।
मगर ऐसा भी नही है की सच्चे प्यार करने वाले अब है ही नही है मगर अब वो समझ गये है कि दुनिया में उनकी कोई अहमियत नही है।
मैनें उन सच्चे प्रेमियों की भावनाओं को अपने कवि मन से अक्षरों में बदलने का प्रयास किया है।
साथ ही उन लोगों को हिम्मत देने का प्रयास किया है :-
तो लिजिए एक रचना साहसी प्रेमी के लिए:-
बहुत बार सिंहासनों से उतारा गया हूँ मैं,
जलते हुए जंगलों से गुजारा गया हूँ मैं।
रास्तों का खौफ तो अब रहा ही नही,
बुलंदियों के दर से भी पुकारा गया हूँ मैं।
जूझने की जिद ने कभी रुकने नही दिया।
सो हार के हर एक मोड़ पर दोबारा गया हूँ मैं।
तुमको मेरी जिद़ की मैं क्या बताऊं हद़,
सहरा में अकेले तैर कर किनारे गया हूँ मैं।
जंग मे जो न हारा वो इश्क में नही बचा,
रफ्ता रफ्ता सलीके से मारा गया हूँ मैं।
प्यार में गया क्या क्या बताना है मुश्किल,
दिल दिमाग आँखे नही सारा गया हूँ मैं।
इश्क में जिस्मफरोशी हमसे नही हुई,
श्लोक और आयतों से सँवारा गया हूँ मैं।
वक्त रहते मुझको मेरे गुरूर ने बचा लिया,
हाँ बहते हुए दरिया से उबारा गया हूँ मैं।
तुमको लगता है कि घाटे मे रहा है 'शक्ति',
पता है क्या गया तुम्हारा तुम्हारा गया हूँ मैं।
✍️ दशरथ राकांवत "शक्ति"
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बहुत धन्यवाद इस प्रोत्साहन के लिए