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बोला समंदर बादल से


कभी कभी कवि वो देखता है जो सामान्य व्यक्ति की आँखो से 

नहीं देखा जा सकता है। 

आज कुछ ऐसी ही एक रचना आप सभी के लिए लाया हूँ :-


बादल और समंदर की बातचीत 



 रोना है जी भरकर मुझको आँसू दे दो, 

एक समंदर बादल से यूं बोल रहा था।


जिसने  कभी  नही  सीमायें   मानी  थी, 

उसका मन भी पसीज कर ढोल रहा था। 

 

उसका   दर्द   तड़प   देखी    मैं    पूछ   पड़ा, 

किस गम में तु ! उर कपाट को खोल रहा था।


हीरे  मोती  रत्न जवाहरात सब तुझमें ही, 

इन सबके बदले तू ! आँसू तोल रहा था। 


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आँसू पौछ के भारी मन से सागर बोला, 

दुनियां के दुख देख के मैं भी ऊब गया। 


इतना  मुश्किल  है  दुनिया  में  जीना क्या, 

जो भी हिम्मत हारा आकर मुझमें डूब गया। 


एक  विधवा दो बच्चों को लेकर, 

एक  पति   सब  अपना खो कर।

एक पगली प्रेम कपट से घायल,

एक  रांझा  रात  विरह में रो कर। 


एक  भाई  भाई  से  घायल, 

एक बहन पीहर को खो कर। 

एक बेटा सपनों  में  जकड़ा,

एक बाप  बेटों  को  रो कर। 


हाय विधाता मैं समझा था मैं ही सबसे खारा हूँ, 

लेकिन आज दर्द में निकले एक आँसू से हारा हूँ। 


✍️ दशरथ रांकावत 'शक्ति'

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