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मत मायड़ ने भूल बावळा

क्षेत्रफल की दृष्टि भारत का सबसे बड़ा राज्य कहीं तपता रेगिस्तान तो कहीं ऊंचे पठार जूझने की शक्ति जिसके अंदर सदा ही रही है।

यहां की भुमि युद्धवीरों की पदचाप से पकी हुई है विश्व विजय की क्षमता वाले अद्भुत वीरो की धरती हर तरफ से भारत के गौरव का भाल होने के पश्चात भी आज तक अपनी भाषा को मान्यता नहीं दिला पाना बहुत दुखद लगता है।
एक रचना जो राजस्थान को प्रदर्शित करती है सभी को निवेदित है:- 

म्हारी आवाज़ में सुणबा खातर अठे दबावों 👇👇👇👇

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मत मायड़ ने भूल बावळा मत मायड़ ने भूल
मत मायड़ ने भूल बावळा मत मायड़ ने भूल


इण ने माण दिलावण खातर
मायड़ ने चमकावण खातर
पूत लड़े दिन रात 
गया सब रोटी बाटी भूल।
बावळा मत मायड़ ने भूल.......


कठी कठी तो ऊंचा भाकर
कठी है गहरी खांया
कठी मिलेला मोटा बरगद
कठी खेजड़ी छांया
अरे पच्छिम में चंबल चमके
पूरब में धोली धूल।
बावळा मत मायड़ ने भूल.......


कठी लहरियों लाल दिखें
आंगरखी कांचल कुर्ती
धोली धोती चूंदडियों साफो
बांदण में वांकी फुर्ती
तीसो दिन त्योहार अठे
थे टंकी राखो फूल
बावळा मत मायड़ ने भूल.......


नुक्ती पूड़ी खाटो खींच्या
पचकूटे रो साग
सीरो सत्तु और चीलडों
पंजीरी रो स्वाद
कैर सांगरी खींच राबडों
किण विद जावे भूल
बावळा मत मायड़ ने भूल......


रण बीरां रो करूं बखान
तो आखर ओछा होवे
मांया ज़ोहर वाली अठे है
रज तलवारां बोवे
अरजी है जद तक सुण लिजों
म्हे हां पृथ्वी,राणा रो कूल
बावळा मत मायड़ ने भूल......


आठ करोडां री बोली ने
क्यूं मंजूरी कोनी
जाति अर जनजाति इतरा
कठी दिखैला कोनी
बात मान लो ओ नेता जी
जावांगा मैं फांसी भी झूल
बावळा मत मायड़ ने भूल.......


बचपन सू घुटकी में पी हां
म्हे मायड़ री बोली
थाप चंग री सुणी जदे ही
मनी आज तक होली
मनडे री कह्वे शक्ति
भाषा संस्कृति रो पूल 
बावळा मत मायड़ ने भूल.......


✍️ दशरथ रांकावत 'शक्ति'




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