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जहां सूरमा डर जाता है

उम्मीद और जोश से भरी एक रचना आपके समक्ष प्रस्तुत करना चाहता हूं क्योंकि आज जीवन में नकारात्मकता और हताशा ने मानव को अपनी शक्तियों से अनभिज्ञ बना दिया है।

कविता निवेदित है :-




 जहां सूरमा डर जाता है लहरों के उफान से,

वहां मेरी पतवारें जूझें दरिया और तूफ़ान से।


मैंने अपने पाँवों को बस इतनी बात सिखाई है,

कट जाना मर जाना लेकिन डरना मत अंजाम से।


अभी ठहरना उचित नहीं है अभी रास्ता लंबा है,

कनक महल तक जाना हमको मिट्टी के मकान से।


जब तक दूजी राह न हो तलवारों से दूर हैं हम,

शस्त्र शास्त्र दोनों कर में हैं कह देना हैवान से।


निश्चय कर दृढ़ धीरज रख मेहनत रंगत तो लाती है, 

नामुमकिन लगने वाले सब काम हुए मुस्कान से।


लक्ष्य हमेशा पुतली ही हो नहीं तनिक भी भ्रम पालो,

शर कानों तक तान धनंजय वेध हुए संधान से।


कइयों बार लिखा बदला है अपने तप ,बल,प्रेम से,

स्वयं विधाता भी डरता है बस ज़िद्दी इंसान से।


कम आँको खुद ना शक्ति दुर्लभ है कवि होना भी,

ब्रह्मा दर्शन भी संभव है केवल अक्षर ज्ञान से।


✍️ दशरथ रांकावत 'शक्ति'

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