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एक रचना ऐसी भी

कभी कभी अपनी बात कहने और लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए बहुत से उपाय करने पड़ते हैं
 आज मैंने भी कुछ ऐसा ही नया प्रयोग किया है।
शुरुआत तो आपको बहुत रोचक लगेगी हंसी मजाक
 भरा संवाद लगेगा मगर आखिर आते आते आपको 
संजीदा मुद्दे भी दिखेंगे।

तो रचना प्रस्तुत है:-

दोस्त की शादी कैसे भुलाई जा सकती है।
पता है रोटीयां खींचडी से भी खाई जा सकती है।

रसगुल्ले एक एक दाल बादाम भी थोड़ा थोड़ा,
मगर इमरती एक साथ ढाई जा सकती है।

इन मुर्खों को कौन समझाये दही बड़े भी है,
चाय तो आखिर में भी लाई जा सकती है।

तुम्हारी खोपड़ी ही तो है शिव का धनुष तो नहीं,
थोड़ी मेहनत से खिसकाई जा सकती है।

मुसीबत में काम ना आई दोस्ती मगर फिर भी,
दो मुक्कों के बाद निभाई जा सकती है।

चलों अब हंसा लिया तुमको मुद्दे पर चले आओ,
सजग अब हो गये तो बात सुनाई जा सकती है।

सिर्फ मायूसी ज़रूरी नहीं संजीदा शेरों के लिए,
संजीदगी इरादों से भी जताई जा सकती है।

चंद पैसों के लिए हर एक को मत बेचों तेजाब,
इससे किसी की बेटी भी जलाई जा सकती है।

नशें की लत में उलझे हो तुम्हें मालूम भी है ये,
तुम्हारे बाप की इसमें सारी कमाई जा सकती है।

जरूरी नहीं कायदे सिखाएं जाये तलवारों से ही,
कभी कलम की ताकत भी दिखाई जा सकती है।

✍️ दशरथ रांकावत 'शक्ति'





Comments

  1. सुपर्ब
    हँसाते हँसाते भी रुला दिए,
    जिंदगी का आईना दिखा दिए ||🙏🌹

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बहुत धन्यवाद इस प्रोत्साहन के लिए

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