शिव सप्तक

 


महाकाल भगवान नीलकंठ महादेव की महिमा अपरंपार है




भोले और सहज स्वभाव वाले मनुष्यों को सुलभ दीनबंधु परमपिता परमेश्वर को बारंबार प्रणाम 🙏 

मां सरस्वती के आशीर्वाद से भगवान शिव की शब्द स्तुति करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है आप सभी इस रचना आनंद लिजिए।

                                      शिव सप्तक 

 मैं शिव तेरा आराध्य हूॅं,
किंचित नहीं मैं बाध्य हूॅं।
छलवान को दुर्लभ्य हूॅं,
सरल को ही मैं साध्य हूॅं।
 
ज़मीं आकाश मुझ में है,
गति प्रकाश मुझ में है।
विकास हास मुझ में है,
सृजन विनाश मुझ में है।
 
मैं बीज की प्रकृति में,
मैं श्वास की आवृत्ति में।
हूॅं स्वप्न में जागृति में,
मैं हूॅं तपी की वृत्ति में।
 
मैं अग्नि वायु जल में हूॅं,
नदी तडाग थल में हूॅं।
युगों में और पल में हूॅं,
मैं आज और कल में हूॅं।
 
है कंठ व्याल चंद्र भाल,
गा रहा प्रलय का ताल।
धधक रही है नेत्र ज्वाल,
मैं ही शंभु मैं ही काल।
 
जटा में गंग धार है,
मुझी से जग का सार है।
वही तो भव से पार है,
जो सत्य का सवार है।
 
मैं ही सुधा पियूष में हूॅं,
मैं कालकूट विष में हूॅं।
ना पूछ मैं किस किस में हूॅं,
त्रिलोक दसों दिश में हुॅं।

 

✍️ दशरथ रांकावत 'शक्ति'


 




Comments

  1. युगों में और पल में हूँ...!लोमहर्षक पंक्तियाँ, उत्कृष्ट स्तुति 🙏🏻🌺🌼

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बहुत धन्यवाद इस प्रोत्साहन के लिए

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