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संभलना खुद को है

नमस्कार मित्रों

बात यूं तो बहुत तार्किक है मगर सोचने पर रहस्यमय भी है

 कई बार आपके निर्णय आपकी उन्नति या अवनति का मार्ग प्रशस्त करते हैं विनाश कैसे आता है यह रामायण, महाभारत और हर छोटे बड़े ग्रंथ में बहुत सुंदर ढंग से बताया गया है कि समझदारी सही और ग़लत के बीच चयन को नहीं कहते समझदारी कहते हैं सही और ज्यादा सही के बीच चयन को।




जब समय का हथोड़ा चलता है परिस्थितियां प्रतिकूल हो जाती है मगर अनुकूलता और प्रतिकूलता दो चरण है ये तो नियति और जीवन के संतुलन के लिए आवश्यक है मगर उस समय आप कैसा प्रदर्शन करते हैं ये निर्धारित करता है कि आप कौन हैं अभावों में सकारात्मक रहने वाले बाजीगर या सब कुछ होते हुए भी किस्मत का रोना रोने वाले डरपोक।


समय की कपटता पर एक कहानी याद आती है त्रेतायुग में जब रावण की सभी प्रमुख वीरों का विनाश हो गया तब उसने अपने भाई कुंभकर्ण को समय से पूर्व जगाया और सारी बातें अपने तरीके से बताई।

कुंभकर्ण बहुत बलशाली होने के साथ ज्ञानी और धर्मज्ञ भी था उसने रावण को समझाया कि श्री राम नारायण के अवतार हैं उनसे बैर विनाश को निमंत्रण है मां सीता को सादर उन्हें लौटाकर अपने कुल के समूल विनाश से बचा लो विभिषण जानता था गलत है उसने आपको कड़वी बातें कही तो आपने उसे लात मारकर निकाल दिया क्योंकि आपकी दुर्बुद्धि ने आपके विवेक को मार दिया है । जब रावण ने देखा कि कुंभकर्ण तो बात मान नहीं रहा तो कैसे अपने ज्ञान का दुरूपयोग रावण ने किया वो बोला विभिषण ने सगे भाई के साथ विश्वासघात किया, भाई अगर गलत भी हो तो शत्रु का साथ नहीं दिया जाना चाहिए।

मैंने अगर सीता का हरण कर लिया युद्ध की ठन गई इतने वीरों को खोने के बाद यदि मैं सीता को लौटा भी दूं तो इसे शरण में जाना नहीं कायरता कहेंगे इसलिए तुम्हें अपने भाई की लाज रखनी पड़ेगी।

एक तरफ धर्म था तो दूसरी तरफ कर्तव्य दोनों ही मार्ग सही है मगर भावनाओं की ने बुद्धि को भ्रमित किया और अधर्म का साथ देकर कुंभकर्ण मृत्यु को प्राप्त हुआ।

सीखने की बात ये है कि जीवन नित नये छल करेगा और ऐसी परिस्थितिया उत्पन्न करेगा कि हम भ्रमित हो जाये मगर हमें परिस्थितियों के संभावित परिणामों का आंकलन करके सर्वोत्तम निर्णय करना है।

✍️ दशरथ रांकावत 'शक्ति'


इसी बात को समझाते हुए मुझे मेरी एक रचना याद आ गयी प्रस्तुत है


                                                      

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