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लौटना नहीं स्वीकार है


महाभारत में एक ऐसा भी वीर था
जिसके साथ नियति ने एक से बढ़कर एक
छल किये यहां तक कि स्वयं भगवान भी
अनेक यत्नों से उसे बलहीन और अपने
पक्ष में लाने के प्रयास करते रहे
मगर वो वीर हर परिस्थिति में वीरता
का प्रमाण देता रहा।


कर्ण अपने विजय धनुष के साथ 
 
 मेरा यह निजी विचार है कि कर्ण का कोई
 निजी स्वार्थ इस युद्ध में दिखा नहीं मगर फिर
मगर बुजुर्गो ने कहा है कि पापी भी संगत भी 
पापी बना देती है।


लिजिए एक रचना विचारों और भावनाओं के
शब्द कलश से:-


 कृष्ण कर्ण संवाद

लौटना नहीं स्वीकार है

रणभूमि में एक दिन अचानक कृष्ण बोले पार्थ से,
जीतना उससे सरल है जो है लड़ता स्वार्थ से।

किंतु ये राधेय बस लड़ता निभाने प्रीत को,
मृत्यु भय इसको नहीं इसको जिताना मीत को।

कुण्डल कवच हीन भी राधेय अविजित सर्व़दा,
भीष्म और गुरु द्रोण से किंचित न कम ये आपदा।

कुछ पल को ठहरों आ रहा हूॅं वीर को कुछ ज्ञान देकर,
होगी 
विजय  अपनी सुनिश्चित  आ गया गर साथ लेकर।

कह के इतना कृष्ण पहुंचे कर्ण के रथ के निकट,
देख कर साक्षात प्रभु को कर्ण लज्जित हुए विकट।

है गिरिधर है भक्त वत्सल दीनबंधु दीनानाथ,
मैं अकिंचन अर्पण करूं क्या शस्त्र केवल मेरे हाथ।

इतना सुनकर छलिया बोलें बसी इसी की कामना है,
छोड़ कर गृह पाप का धर्म कर को थामना है।

देख कर नटवर की लीला कर्ण बोले सर झुका कर,
है प्रभु मुमकिन नहीं ये मित्र त्यागू दिल दुखा कर।

आपके आने का किन्तु ध्येय हरि में जानता हूं,
क्षमा करना कृष्णा अर्जुन शत्रु अपना मानता हूं।

आज रण जब ठन गया है वर्षो के सत्कर्म से,
खुद आपने ही श्रेष्ठ बोला कर्म को था धर्म से।

अब अगर यदि हो मैं जाऊं देख नर नारायण का संग,
हो ही जायेगी मेरी वर्षों की तपस्या क्षण में भंग।

अब लक्ष्य मेरा सामने है लौटना नहीं स्वीकार है,
कर्म मेरा युद्ध है बस विजय  या फिर हार है।

है सामने अर्जुन तो क्या मैं शस्त्र अपने छोड़ लूं,
त्याग अपने कर्म को मैं नियति से मुख मोड़ लूं।

भय मृत्यु का मुझको नहीं ना मोक्ष की ही चाह है, 
जिसने विपत्ति हाथ थामा उसे त्यागना गुनाह है।

अब तक जिया हूॅं वीर बनकर वीर ही मरना मुझे,
जग हंसा कर गर मिले वो स्वर्ग ना स्वीकार मुझे।

इसलिए केशव सुनो दुर्योधन हरगिज़ न छोडूंगा,
मित्रता मेरा वचन है अपना वचन ना तोड़ूंगा।

✍️ दशरथ रांकावत 'शक्ति'



Comments

  1. प्रकृष्टता से वीर कर्ण का पक्ष आपने रखा। वार्तालाप शब्दों में दृष्टिगत हो गया।श्लाघ्य अभिव्यक्ति!

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  2. 👌👌👌👌👌

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  3. उक्त जिरह को शानदार लिपिबद्ध किया👍🏻
    बेहद प्रभावी महोदय।।

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बहुत धन्यवाद इस प्रोत्साहन के लिए

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