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प्रतिकार


एक चित्र देखा जिसमें  महाभारत के उन सभी किरदारों
 का चित्रण था जो महाभारत का मूल कारण थे 
अर्थात कौरव और पांडव



मेरा व्यक्तिगत मत है कि व्यक्ति जो प्रतिकार का बल होते हुए भी अधर्म और पाप को सहन करता है वो कायर ही होता है।

जब जब भी धरती पर पाप और अनाचार बढ़ा
 है धर्म और अधर्म के बीच सामंजस्य बिगड़ा है
 मानव ने कराह कर ईश्वर को पुकारा है।

 एक दृष्टिकोण जो यह बताता है कि ईश्वर 
हमेशा हमारे कष्टों को हरने नहीं आयेगा हमको स्वयं उठकर लड़ना होगा उसी दृष्टिकोण पर 
 आधारित एक रचना आप सबके
सामने प्रस्तुत करता हूं:-

प्रतिकार

 जब थक हार गई अबला नर के नीच कर्म से,
थे शीश अनेकों वीरों के पर झुकें थे सभी शर्म से।
दांतों से भींच वसन अपना निज लाज बचाती कृष्णा है,
मानव मूल्यों का महापतन नर की यह कैसी तृष्णा है।
थी पतिव्रता वो पटरानी भी पर समय खींच कहां लाया,
या यह कह दें कि सोये नर को आयी जगाने महामाया।
वरना  चंडी क्या शांत रहेगी चीर खींचने देगी ?
जब लहु दृष्टि में उतरे तो तत्काल भस्म कर देगी।
पर उसने रखी लाज पुरूषों की नहीं मचाया तांडव,
जोर जोर से पीड़ा गायी ताकि जाग जाये ये पांडव।
नर की सारी कीर्ति लगी थी दांव उसी चौसर पर,
क्षमा बड़ा है गुण लेकिन है व्यर्थ शत्रु जब दर पर।
क्या पाप अनिती हावी हो तब सुर देव पुकारें जायेंगे ?
किस बल पर होकर गर्वित नर स्वर्ग स्वीकारें जायेंगे ?
नर का बल है बल तब ही जब भोग छोड़ प्रतिकार करें,
जिस कर ने था छुआ नारी को उस पर ही असि प्रहार करें।
उठ कर हम में से ही एक दिन राणा प्रताप बोला था,
सुनकर ही जिसका सिंहनाद शाशन दिल्ली का डोला था।
हम में से उठे राणा कुम्भा हम में से उठे शिवाजी थे,
जिनकी हुंकार भयंकर थी डरते जिनसे मियां जी थे।
क्या भूल गए तुम उस चौहान को पृथ्वीराज था जिसका नाम,
सत्रह बार हरा कर जिसने किया मुगल का काम तमाम। 
उन नरवीर महामानव का रक्त तुम्हारी नस में भी है,
कर सको पाप प्रतिकार है नर वो साहस तेरे बस में भी है।
इसलिए उठो की है पुकारती भारत माता पुत्रों को,
तुम करो स्थापित धर्म पुनः मानव मुल्यों सूत्रों को।
कलियुग में वो देव पुरुष जिसने जीवन को झोंक दिया,
देकर अपना बलिदान देश हित बलिवेदी को भोग दिया।
✍️ दशरथ रांकावत 'शक्ति'

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