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भाग्यहीन


 दुनिया कितनी अजीब है ना जिसे जो चाहिए उसे वह मिलता नहीं और जिसे कदर नहीं होती उसे भाग्य से सब मिल जाता है।

उसूलों की लड़ाई में कमर तक टूट जाती हैं, 
हो कितना भी आदत में लेकिन आदत छूट जाती हैं। 
मैं उसको मनाता हूँ अपना खून बहाकर के, 
        मगर ये जिंदगी कुछ पल हसकर फिर रुठ जाती है।                                                                                                                               दशरथ रांकावत "शक्ति"

सच है कोई मानो या ना मानो लेकिन कुछ तो है की एक छोटा बच्चा जो अभी पैदा भी नहीं हुआ उसकी भाग्य रेखाए बनी भी नहीं होगी फिर भी कोई है जो कहता है की तेरे चाहने वाले तुझे झाड़ियों में छोड़ जाएंगे और तुझे अपने बलबूते पर अपने भाग्य के भरोसे जीना है।



 क्या बचपन होगा क्या जवानी क्या बुढापा होगा हर मोड़ पर उसे अकेलापन खायेगा अनजान रास्तो का कोई हमसफर नहीं होगा ना ही कोई हाथ मुश्किलो में उसे थामने आएगा।
दर्द के उस पृष्ठभूमि का कुछ चित्रण क्या उसकी मनोव्यथा होगी प्रस्तुत है ऐसे ही अभागे का दर्द बयां करती कविता जिसका शीर्षक है :-

                              फैका हुआ बच्चा

पैदा करने के बाद जब फेंक गई मां अंधेरे में,
तब से ही हूं मैं इन दुखों के घेरे में।
पता नहीं किसे मिला कौन उठा लाया मुझे घर अपने,
खुली आंख तब से आते हैं बुरे सपने।
उस दिन जब लौट गई मौत गम हमारा देखकर,
तब पता चला क्यो उठाता नहीं कोई चीज कचरे में फेंककर।
खेल खिलौने मिठाई पढ़ाई सब बातें सपनो सी है,
जूठन,गाली,भीख,बीमारी सब लगती अपनों सी है।
पेट की आग और मुसीबतो ने खूब जलाया,
नतीजा यह निकला कि इंसान बन ही न पाया।
साहब भीख मांगना शौक नहीं मजबूरी है,
पेट की आग को बुझाना भी जरूरी है।
मैं कल्पना भी करूं तो क्या करूं कुछ मेरे अनुकूल नहीं,
सोचता हूं दुनिया में आना कहीं मेरी भूल नहीं।
जिंदगी होनी होती खत्म तो हो जाती बचपन मे, 
अब तो बीते कई साल आ गया हूं पचपन में।
मर जाऊंगा तो पूछूंगा "मां" से क्या मजबूरी थी तेरी,
दुनिया का डर था या फिर गलती थी मेरी।
लाख दोष मुझ में मगर मन का हूं सच्चा,
हां मैं हूं अनाथ,अभागा फैका हुआ बच्चा।
                
                                     दशरथ रांकावत "शक्ति" 

जिंदगी के इतने आघातो के बाद भी जीवन जीने की जो इच्छा अभागे,बेबस, दुखी, गरीब में मिलती है वो कही और नहीं मिलती। 
ऐसे लोग मृत्यु से भी ये कहने से नहीं चुकते :-

प्यारी मौत तुम जब भी आओ तैयारी से आना मैं यू ही नहीं चलूंगा तेरे साथ मुझे ले जाने के लिए तुमको मुझे मारना पड़ेगा। 
                         दशरथ रांकावत "शक्ति" 




Comments

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