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मेहनत और मंजिल



उम्मीद से बढकर अनमोल वस्तु इंसान के पास नहीं ये वो हथियार है जिससे इंसान असंभव को संभव कर सकता है मगर उसके साथ एक दूसरी ताकत बराबर काम करती है  वो है मेहनत ! 


आसानी से मिल जाये वो मंजिल कैसी मजा तो मेहनत का तब है जब पसीने की हर बूँद जीत की गवाही दे। 
मंजिले जाति, धर्म, मजहब नहीं देखती वो देखती है पागलपन, जुनुन और हिम्मत ! 


वास्तव में दुख सुख की अहमियत बताता है वैसे ही मुश्किले मंजिल की लज्जत बढाती हैं।

हारा हुआ इंसान घृणा के योग्य नहीं  वरन आदर के योग्य होता है क्योंकि उसके पास होता है अनुभव
कहा भी गया है:- 



मैं मंजिल पाने की जिद्द में नाकामी से ऊब गया,
गिरती चिंटी ने समझाया कोशिश मंज़िल लाती हैं।
रस्ते के काँटों से छिलकर पैरो ने ना बोल दिया, 
गिरती धारा ने समझाया मुश्किल सबके आती हैं।
पाँच कोस से पानी लाना भले जमाना भूल गया, 
इतना भी आसान कहाँ था माँ हमको बतलाती है। 
पाठ पढ़ो मेहनत का देखो दुनिया सीख सिखाती है, 
कैसे चींटी खड़ी चढाई दाना ले चढ जाती हैं। 
हलधर बंजर भूमि पर मेहनत का दाना बोता है, 
पत्थर पर पत्थर रगड़ो तो चिनगारी तो आती है। 
दिन भर खूब जलाता सूरज भले बदन है झुलस गया, 
नयी उमंग का बीज उगाने शीतल रात तो आती हैं। 
डरो नही हिम्मत रखो मुश्किल साहस तो नापेगी,
जो डटकर भिड़ जाता है हाँ जीत उसे मिल जाती है। 
                                  दशरथ रांकावत "शक्ति"



 यकीन करने की बात है इंसान के लिए कुछ भी मुश्किल नहीं उसने तपस्या के सहारे गंगा को धरती पर अवतरित कर दिया।
नदी पर्वत उसके साहस और पुरुषार्थ के आगे कुछ नहीं  आज बस उसी आत्मविश्वास, साहस की कमी के कारण वो मशीनो का गुलाम बनता जा रहा है।


निकलेगा

पत्थर में से जल निकलेगा भूमि बंजर है फल निकलेगा,
कोशिश तो कर पथ के राही हर मुश्किल का हल निकलेगा।
आकाश भले है दुर मगर विश्वास पे रख मजबुत जकड़,
गिरना उठना छोड़ नहीं गिरता जा एक दिन पर निकलेगा।
जब ठान लिया तो पुरा कर दुश्मन को क्रोध से घुरा कर,
सब दाँव लगा और धीरज रख मेहनत से ही मेड़ल निकलेगा।
तपती धरती गरम आकाश मन में है बस उसकी आस,
खुन पसीना बना बहा तु इस मिट्टी से अन्न निकलेगा।
सर्दी गर्मी छाँव और धूप जान निकाले प्यास और भुख,
मुश्किल का कोई सगा नहीं तकलीफो में पल पल निकलेगा।
तिनका तिनका चुगकर चिडिया कैसे बुनती अपना घर,
हवा तेज हे साँझ हुई है नया सवेरा कल निकलेगा।
जो बैठे तख्तो पर उसने जाने क्या क्या दुख है पाया, 
सच है सोना काला होता पर तप कर ही दुगुना निखरेगा।
सुख दुःख की घडियाँ ना गिन घटती बढती राते दिन,
रात की बाते रात को भूल रवि सुनहरा कल निकलेगा।
                                 दशरथ रांकावत "शक्ति"




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बहुत धन्यवाद इस प्रोत्साहन के लिए

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